Saturday, August 21, 2010

मै
जब तुम में
खो जाता हूँ
तो मौन हो जाता हूँ

जब बात हद से
गुजर जाती है
मेरे दिल कि गहराइयो में
उतर आती है
तो मौन हो जाता हूँ

जब देखती हो
तुम मेरी आँखों में
मै सपनो में
खो जाता हूँ
तो मौन हो जाता हूँ

जब यूँ ही
बे बात मुस्का
जाती हो तुम
मै सचमुच
खिल जाता हूँ
तो मौन हो जाता हूँ

जब बिखेर देती हो तुम
अपना सारा प्यार मुझ पर
मै उसे सारा
समेट नहीं पता हूँ
तो मौन हो जाता हूँ

जब तुम्हे छूने कि ललक
दौड़ जाती है ह्रदय में
खुद को रोक
नहीं पता हूँ
तो मौन हो जाता हूँ

जब चाहता हूँ तुमसे
बहुत बात करना
पास तेरे आता हूँ
कुछ कह नहीं
मगर पता हूँ
तो मौन हो जाता हूँ

चाहता हूँ तुम्हे
यूँ ही देखता रहू खामोश
तुम्हे देखने कि चाहत में
मै सब कुछ
भूल जाता हूँ
तो मौन हो जाता हूँ

1 comment:

  1. anu...really gud one i love this poem
    great felling expressed by u..superb

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