Sunday, August 1, 2010

मंजिलें भी उसकी थी
रास्ता भी उसका था
एक में अकेला था
काफिला भी उसका था
साथ-साथ चलने कि सोच भी उसकी थी
फिर रास्ता बदलने का फैसला भी उसका था
आज क्यों अकेला हूँ में ?
दिल सवाल करता है यह ....
लोग तो उसके थे , क्या खुदा भी उसका था

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