Saturday, July 31, 2010


दिलों में दर्द लब पे तश्न्गी है यहाँ
जिन्दगी कुछ भी नही सिर्फ़ बेबसी है यंहा
शोर है भीड़ है हंगामा कत्लेआम के बीच
तुम्हारी साँस अभी है यही खुशी है यहाँ
वो बात झूठी थी जो मैं एलान किया करता था
फकत जो तू कहे-बोले वही सही है यहाँ
कोई तो हद हो और कितना दर्द पी जायें
तमाम गम है और तनहा आदमी है यहाँ
मैं एक रोज मोहब्बत भी करके देखूंगा
सुना है दिल का लगाना भी दिल्लगी है यहाँ
हमारे गम से वो गाफिल नही हैं फ़िर भी बसर
कभी जो पूछे तो कहना हंसी खुशी है यहाँ





कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये

यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है
चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिये

न हो क़मीज़ तो घुटनों से पेट ढक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिये

ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिये

वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिये

जियें तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के लिये
मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिये

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