प्यार क्या है ज़रा सोचकर देखिए,
ढाई अक्षर में रब खोजकर देखिए,
जिंदगी और जन्नत इसी में बसे,
बूंद से आप सागर निचोड़कर देखिए,
प्यार क्या है..............
कभी माँ की ममता में बसता है ये रब,
कभी बन के दिल भी धड़कता है ये रब,
कभी कच्चे रेशम के धागों में बंधकर,
किसी की कलाई पे सजता है ये रब,
भूलकर खुद को बस इसी के होकर देखिए,
प्यार क्या है..............
कभी जब इबादत में झुकता है ये रब,
तभी मीरा और कबीर बनता है ये रब,
कभी भेद अपने पराए का मिटाकर,
बेर शबरी के जाकर के चखता है ये रब,
कभी इसको दिल से जोड़कर देखिए,
प्यार क्या है................
सरहदों में सिमटकर रह सका ये कहाँ कब,
बँटा न ये अब तक भले बंट गया सब,
मिटा दे दिलों से नफरतों के असर को,
है ज़रूरत इसी एक जज़्बात की अब,
घुटन की ये ज़ंजीर तोड़कर देखिए,
प्यार क्या है ज़रा सोचकर देखिए,
ढाई अक्षर में रब खोजकर देखिए.............
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (30/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteso nice anu.....welll keep it up.
ReplyDeleteawesome thoghts...with excellent writing skills..
ReplyDeleteWOW Anu so nice thought
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