Saturday, November 13, 2010

खुद की तलाश में.

भटक रही हूँ मैं सहारे की तलाश में ......

.नदी सी बह रही हूँ, किनारे की आस में.......

.खो रही हूँ अँधेरे में.........

.रौशनी की तलाश में.......

खुद में ही उलझी हुई हूँ........

खुद की तलाश में............

Sunday, August 29, 2010




प्यार
क्या है ज़रा सोचकर देखिए,
ढाई अक्षर में रब खोजकर देखिए,
जिंदगी और जन्नत इसी में बसे,
बूंद से आप सागर निचोड़कर देखिए,
प्यार क्या है..............
कभी माँ की ममता में बसता है ये रब,
कभी बन के दिल भी धड़कता है ये रब,
कभी कच्चे रेशम के धागों में बंधकर,
किसी की कलाई पे सजता है ये रब,
भूलकर खुद को बस इसी के होकर देखिए,
प्यार क्या है..............
कभी जब इबादत में झुकता है ये रब,
तभी मीरा और कबीर बनता है ये रब,
कभी भेद अपने पराए का मिटाकर,
बेर शबरी के जाकर के चखता है ये रब,
कभी इसको दिल से जोड़कर देखिए,
प्यार क्या है................
सरहदों में सिमटकर रह सका ये कहाँ कब,
बँटा ये अब तक भले बंट गया सब,
मिटा दे दिलों से नफरतों के असर को,
है ज़रूरत इसी एक जज़्बात की अब,
घुटन की ये ज़ंजीर तोड़कर देखिए,
प्यार क्या है ज़रा सोचकर देखिए,
ढाई अक्षर में रब खोजकर देखिए.............

Saturday, August 21, 2010

मैने बेटी बन जन्म लीया,
मोहे क्यों जन्म दीया मेरी माँ
जब तू ही अधूरी सी थी!
तो क्यों अधूरी सी एक आह को जन्म दीया,
मै कांच की एक मूरत जो पल भर मै टूट जाये,
मै साफ सा एक पन्ना जिस् पर पल मे धूल नजर आये,
क्यों ऐसे जग मै जनम दीया, मोहे क्यों जनम दीया मेरी माँ,
क्यों उंगली उठे मेरी तरफ ही, क्यों लोग ताने मुझे ही दे
मै जित्ना आगे बढ़ना चाहू क्यों लोग मुझे पिछे खीचे!
क्यों ताने मे सुनती हू माँ,मोहे क्यों जन्म दीया मेरी माँ?
by monika chouhan