मै तो मखमली धोरों की उपज हूँ
ज़िन्दगी पथरीले पहाड़ों से कैसे टकरा गई ?
शुष्क वसुधा है ज़न्म्स्थली मेरी
फिर नैनों में इतनी नदियाँ कहाँ से आ गई ?
ज़िन्दगी पथरीले पहाड़ों से कैसे टकरा गई ?
शुष्क वसुधा है ज़न्म्स्थली मेरी
फिर नैनों में इतनी नदियाँ कहाँ से आ गई ?
No comments:
Post a Comment