कब खामोश कर दे दिल को ये हिचकì
कब खामोश कर दे दिल को ये हिचकियाँ, पता
कब लगे भिनभिनाने, मक्खियाँ क्या पता
हादसों का शहर है, हादसों से भरी है जिंदगी
कब चीखकर माँग उठे बैसाखियाँ,क्या पता
उड़ जा रे पक्षी शाख छोड़कर,बेदर्द जमाना
कब आ जाये पर कतरने लेकर कैंचियाँ,क्या पता
जीवन है एक नदिया,तुम सीख ले उसमें
तैरना कब तक मिलेगी माँ की थपकियाँ,क्या पता
मत देर कर,लगा ले उससे नेह,दुखों के सैलाब
में कब बह जाये कागज की ये किश्तियाँ, क्या पता
फ़ूल को शूल कहना
फ़ूल को शूल कहना,उसकी कोई तो लाचारी है
गहराई को न थाह पाना,जमाने की बीमारी
है शिकवा न शिकायत कोई,वादों का लेकर
सहारा शूली पर चढ़ जाना, इश्क़ की ख़ुद्दारी है
सब कुछ निसारे-राहे वफ़ा कर चुके हम
अब निगाहें कर्ज़, चुकाने की,यार की बारी
है जाने किस लिए उम्मीदवार बैठा हूँ मैं यहाँ
वहाँ जाने की तो कोई नहीं सवारी है
जब नजात मिली ग़म से, मिट गई कद्रें
जिंदगी की तब से, दुनिया की,क्या वफ़ादारी है
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