ये सोचना गल़त है
ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं,
मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बेख़बर नहीं।
अब तो खुद अपने खून ने भी साफ़ कह
दिया-मैं आपका रहूँगा मगर उम्र भर नहीं।
आ ही गए ख्व़ाब तो फिर जाएँगे कहाँ,
आ ही गए ख्व़ाब तो फिर जाएँगे कहाँ,
आँखों से आगे इनकी कोई रहगुज़र नहीं।
कितना जीएँ, कहाँ से जीएँ और किस लिए,
कितना जीएँ, कहाँ से जीएँ और किस लिए,
ए इख़्तियार हम पे है तक़दीर पर नहीं।
माज़ी की राख उल्टें तो चिंगारियाँ मिलें,
माज़ी की राख उल्टें तो चिंगारियाँ मिलें,
बेशक किसी को चाहो मगर इस क़दर नहीं।
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